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दोहा:-

1. रहीमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय।

 ⚡बिस्तार :- 

सभी के जीवन में रिश्ते एक बहुत ही नाज़ुक धागे जैसे होते हैं। ये धागे कभी-कभी बहुत मजबूत लगते हैं, लेकिन असल में वे बहुत नाज़ुक होते हैं। जब हम प्यार, भरोसा या दोस्ती में किसी को चोट पहुँचाते हैं—चाहे वह झूठ बोलकर हो, या धोखा देकर, या सिर्फ ध्यान न देकर—तो यह धागा टूट जाता है।

और एक बार जब यह टूट जाता है, तो उसे वापस जोड़ना आसान नहीं होता। ज़रूर, आप कोशिश कर सकते हैं, लेकिन बाहर जरूर एक गाँठ पड़ जाती है। उस गाँठ की वजह से कभी-कभी रिश्ता वैसा नहीं रह पाता जैसा पहले था। छोटी-छोटी बातें, जो पहले आसान लगती थीं, कहीं न कहीं अब परेशानी या दूरी पैदा करती हैं।

इसलिए रहीम यहाँ एक बहुत ही सरल लेकिन गहरी बात कह रहे हैं—रिश्तों को कभी कमजोर मत समझो। उनका सम्मान करो, और प्यार से संभालो। ठीक उसी तरह जैसे हम किसी नाज़ुक धागे को बिना टूटे संभालते हैं, वैसे ही अपने रिश्तों को प्यार और समझदारी से निभाओ।

2. रहिमन हरि की वैराग्य, मन मंझें बसाय।
जो मरै सोई पावै, जीवन व्यर्थ न गवाय।

बिस्तार :- 

इस दोहे में रहीम जी हमें जीवन की बहुत महत्वपूर्ण सिख दे रहे हैं। उन्होंने कहा है कि हमें मन को भगवान के प्रेम और वैराग्य में स्थिर करना चाहिए, और अपने जीवन में केवल सांसारिक चीज़ों और लालच में कभी उलझना नहीं चाहिए।

जब हमारा मन भक्ति और ईश्वर की ओर लगा रहता है, तो जीवन का असली उद्देश्य पूरा होता है। वहीं, जो व्यक्ति केवल दुनियादारी, धन, शोहरत या इच्छाओं के पीछे भागता है, वह असली सुख और शांति नहीं पा सकता।

रहीम जी यहाँ कहते हैं कि मृत्यु के बाद जो फल मिलेगा वही सच्चा लाभ है, इसलिए जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हमें अपने समय और ऊर्जा को ऐसे कामों में लगाना चाहिए, जो हमें अंत में सच्चा आनंद और संतोष दें।

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